राजनांदगांव। जिला भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा जिलाध्यक्ष व पार्षद दल के प्रवक्ता शिव वर्मा ने बताया कि कांग्रेस के आपातकाल को भाजपा काला दिवस के रूप में मनाएंगे । तत्कालीन प्रधानंमत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा भारत में 1975 में लगाया गया आपात काल भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में सबसे बड़ी घटना है। आज कि पीढ़ी आपातकाल के बारे में सुनती जरूर है, लेकिन उस दौर में क्या घटित हुआ, इसका देश और तब की राजनीति पर क्या असर हुआ, इसके बारे में बहुत कम ही पता है। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने एक बार फिर तानाशाही की वापसी की आशंका जताकर इस विषय पर तीखी बहस छेड़ दी है। आडवाणी की आशंका को पूरी तरह खारिज भी नहीं किया जा सकता क्योंकि 1975 में जब आपातकाल की घोषणा की गई थी तब सत्ता और संगठन के सारे सूत्र श्रीमती इंदिरा गांधी के हाथ में ही थे और आज भी कमोबेश स्थितियां वैसी ही बन रही हैं। 25-26 जून की दरम्यानी रात 1975 से 21 मार्च 1977 तक (21 महीने) के लिए भारत में आपातकाल घोषित किया गया था। आपातकाल लागू करने के लगभग दो साल बाद विरोध की लहर तेज होती देख इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर 1977 में चुनाव कराने की सिफारिश कर दी।
श्री वर्मा ने आगे बताया कि चुनाव में आपातकाल लागू करने का फैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ। खुद इंदिरा गांधी अपने गढ़ रायबरेली से चुनाव हार गईं। जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 350 से घटकर 153 पर सिमट गई और 30 वर्षों के बाद केंद्र में किसी ग़ैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी थी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक समय था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे और सभी नागरिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया था। विपक्षी दलों के सभी बड़े नेताओं मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडीज, जयप्रकाश नारायण और चन्द्रशेखर को भी जेल भेज दिया गया, जो इन्दिरा कांग्रेस की कार्यकारिणी के निर्वाचित सदस्य थे। इसी दौरान सरकार ने संविधान में परिवर्तन कर एक ऐसी व्यवस्था को पनपने का आधार तैयार किया जिसको राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखपत्र ‘आर्गनाइजर’ ने ‘पारिभाषिक दाग’ का नाम दिया। पत्र के संपादकीय में कहा गया है कि ये दाग उस कथित धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी राजनीति को गढ़ रहे हैं जो कि सत्ता के राजनीतिक दुरुपयोग से लेकर वोट बैंक की राजनीति में बदल गए हैं। ये समाज में वैमनस्यता, भेदभाव को बढ़ाने के साथ-साथ जनता परिवार और उनके गुटों के नाम पर सामने आए हैं। और फिर चली इंदिरा गांधी विरोधी लहर पर और फिर चली इंदिरा गांधी विरोधी लहर आपातकाल लागू करने के लगभग दो साल बाद विरोध की लहर तेज होती देख इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर 1977 में चुनाव कराने की सिफारिश कर दी। चुनाव में आपातकाल लागू करने का फैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ। खुद इंदिरा गांधी अपने गढ़ रायबरेली से चुनाव हार गईं। जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 350 से घटकर 153 पर सिमट गई और 30 वर्षों के बाद केंद्र में किसी ग़ैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ। कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली। नई सरकार ने आपातकाल के दौरान लिए गए फैसलों की जांच के लिए शाह आयोग गठित किया। नई सरकार दो साल ही टिक पाई और अंदरुनी अंतर्विरोधों के कारण 1979 में सरकार गिर गई। उपप्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कुछ मंत्रियों की दोहरी सदस्यता का सवाल उठाया जो जनसंघ के भी सदस्य थे।