छत्तीसगढ़ बनने पर प्रदेश का हुआ सांस्कृतिक क्षरण- नगीन तनवीर

छत्तीसगढ़
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० लोक गीत संगीत की आत्मा नष्ट हुई… खिचड़ी परो से जाने का दौर
० हबीब तनवीर की धरोहर ‘‘न्यू थियेटर’’ आज भी चल रहा

राजनांदगांव। अंर्तराष्ट्रीय स्तर के ख्याति प्राप्त रंग कर्मी रहे पदमश्री स्व. हबीब तनवीर की सुपुत्री नगीन तनवीर इन दिनों राजनांदगांव प्रवास पर है। वे भोपाल से अपने गुरू के पास धूपद गायन सीखने हावड़ा जा रही है। संस्कारधानी नगरी कलाकारों का गढ़ है। यहां के नामी कलाकार मदन निषाद, लालू बोडरा, बृजलाल गोविंद निर्मलकर, पूनम दीपक विराट, अमर दास मानिकपुरी, देवी लाल नाग, उदेराम श्रीवास आदि उनके पिता श्री स्व. हबीब तनवीर के साथ काम कर चुके है जिन्हें काफी प्रसिद्धि मिली थी। अत: उन पुराने व परिचित लोगों व कलाकारों से मिलने नगीन तनवीर इन दिनों शहर में ठहरी हुई है। उन्होंने एक मुलाकात के दौरान बताया कि उसकी बचपन से ही रूचि गायन में रही है। उन्होंने अपने पिताश्री के नाटक में पूनम विराट अगेश नाग, माला, फिदा बाई, कौशिल्या आदि के साथ छत्तीसगढ़ी गीतों व अन्य गीतों का गायन का काम किया है। छत्तीसगढ़ी गीत संगीत उन्हें काफी प्रिय है। यही नहीं यहां की परम्परा संस्कार में भी वह सनी नजर आती है। उन्होंने मधुमिता जी से ठुमरी टप्पा आदि सेमी क्लासिकल चीजे सीखने के बाद भी छत्तीसगढ़ी के करमा, ददरिया, सुआ, पंथी आदि गीतों पर काफी जुड़ाव महसूस करती है। यही नहीं वे छत्तीसगढ़ी पहनावा लूगरा चाव से पहनती है। लाखड़ी दाल, मसूर, उड़द दाल, भथुवा भाजी,चरोटा भांजी अमारी भांजी अंगाकर रोटी, बासी आदि बड़े चाव से खाती है। आखों में हमेशा काजर आंजे रखने वाली नगीन बताती है कि पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनने से यहां का सांस्कृतिक क्षरण हुआ है। लोग बहुत ज्यादा फैशनेबल हो गये है। गोंदली पनही, बंडी अंगरखा,पपची सोहारी आदि को नहीं जानते। इस फेर में यहां की कला संस्कृति परम्परा रस्म त्यौहार आदि को लोग भुलाते जा रहे है। खेतों में अब ददरिया गाते सुनाई नहीं देता, छेरछेरा के दिन हो या अन्य पर्व में महिलाएं बिल्ले ही थपड़ी पीटते हुए नाचते व सुआ गीत गाते दिखाई देती। घर की बहु-बेटियां व बुजुर्ग महिलाए बिहाव गीत गाना भूल गई है। डीजे में ही इन्हें सुना जा रहा है। भड़ौनी गीत किसी को भी याद नहीं है। इसी तरह पंथी गीत भी कमतर सुनाई देने लगे है। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी फिल्में भी बनने लगी है लेकिन उसमें छत्तीसगढ़ी संस्कृति की छाप दिखाई नहीं देती गीत-संगीत में हिन्दी की तरह इसमें भी खिचड़ी परोसा जा रहा है। जिसे सुनकर उन्हें काफी दुख होता है। इसलिए ‌वह इस तरह के गीत संगीत सुनना बंद कर दी है ।उन्होंने बताया कि उनके पिताश्री द्वारा सृजित नाटक हिरमा की अमर कहानी ,राज रक्त, साजापुर की शांति बाई में संगीत भी दिया है। उन्होंने मुद्रा राक्षस व अन्य नाटकों में अभिनय किया है। चोर चरण दास नाटक में रानी की भूमिका निभाई है। उन्होंने सन 2011 में ठुमरी सीखी तथा गुंडेचा बंधुओं से ध्रूपद सीखा। उनकी सन 1985 से संगीत यात्रा जारी है। वे ध्रूपद की बारिकियों को और आत्म सात करने अपने गुरू के पास हावड़ा जा रही है। उनकी मां मोनिका तनवीर बंगाल से ही सम्बंध रखती है। उसे बंगला के साथ-साथ हिन्दी अंग्रेजी व छत्तीसगढ़ी व कुछ अन्य भाषाये बोलना अच्छा लगता है।


प्रजापिता ब्रहम कुमारी संस्था से जुड़ी नगीन तनवीर का आध्यात्मिक के विषयों में भी रूचि है। उन्होंने छत्तीसगढ़ के बुजुर्ग कलाकारों व खास कर नाचा कलाकारों को शासन द्वारा दिये जाने वाले मासिक मानदेय को संतोष जनक नहीं बताया तथा कहा कि महंगाई को देखते हुए मासिक मानदेय पांच से सात हजार होनी चाहिए तथा इन वरिष्ठ लोक कलाकारों की मृत्यु होने पर इनकी विधवाओं को उक्त मासिक मानदेय दिये जाने की बात कही। सुश्री नगीन तनवीर ने आखिरी में यह बताया कि उनके पिता जी स्व. तनवीर की धरोहर ‘‘नाटय ग्रुप’’ नया थियटर आज भी चल रहा है। इसे रामचन्द्र जी के निर्देशन में छत्तीसगढ़ी व अन्य स्थानों के कलाकारों द्वारा चलाया जा रहा है। न्यू थियटर के संगीतकार देवीलाल नाग के दामाद धन्नु श्रीवास व संगीता आदि इससे जुड़े हुए है। जबकि लोगों द्वारा अफवाह उड़ा दिया गया था कि न्यू थियटर को बंद कर दिय गया है। वे फिलहाल नाट्य कर्म से दूरी बना कर पूरा ध्यान संगीत की ओर लगा दी है। ध्रूपद गायन के लिए उनकी आवाज मुफीद बताए जाने पर‌ वह ‌ इसे और भी भांजने अपने गुरू के पास जा रही है। इस बीच वे अपने साथी कलाकार रवि सांगड़े के साथ पुनम तिवारी, लिमेश शुक्ला व उनके परिवार के साथ मिलने के अलावा अन्य कलाकारों के परिजनों से मिलकर कुशल क्षेम ज्ञात करेगी।

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